Tuesday, August 17, 2010

फज़ल (फनी-ग़ज़ल)

तेरे कशीदे में चंद मिसरे लिख रहा जो याद है/
मेरे नशेमन, ऐ जाने जां, बीता जमाना याद है//

नाक बहना सर्दियों में, दांत वो खटखटाना तेरा/
मेरे घर के परदे में चुपके से पोंछ जाना याद है//

अब भी वो वहीं सूखा पड़ा है नासपीट/
रोशनी में ट्यूब की उसका, चमचमाना याद है//

एक थी स्याही वोट वाली, मरे जो छूटे न कभी/
दूजा इस कातिल निशां का न मिटाना याद है //

बात कल की है अभी, भूले से भूलाए न भूले/
तीरगी सी चुभकर तभी दिल को जलाना याद है//

देख अपने यार को सरेराह, आंख मार के जानेमन/
मुझसे नजरें मिल जाने पे तेरा मुस्कुराना याद है//

अदना या बेचारा सा होकर दर्द कितना मैं सहूं/
झेंपकर भी तब मेरा, हंसना-हंसाना याद है//

खाली थीं जेबें जब मेरी, नहीं थीं फूटी कौड़ियां/
कर्ज के क्रेडिट कार्ड से पिज़्जा बुक कराना याद है//

वो मैक-डी, वो पापा जाॅन, निरूलाज़ की बीती शामें/
कैंडल लाइट डिनर में तब लाखों लुटाना याद है//

कर्ज की तब फिक्र न थी, बैंक वाले भी रज़ामंद थे/
रिकवरी वालों का बाद में, मेरी गाड़ी ले जाना याद है//

तौबा करने का मन लिए गए थे गंगा नदी में/
साथ मेरे हरिद्वार में तब डुबकी लगाना याद है//

अपना हाथ मुझको थमाकर, ले रहे थे डुबकियां/
नाम औरों का लेकर मुझको जलाना याद है//

मिले अचानक माॅल में, मन ही मन गाली दिए/
मुस्कुरा के मन से दो मन, बुदबुदाना याद है//

कह दिया मजबूर होकर, तलाश तेरी थी मुझे/
नजरें दौड़ती और कहीं, जो समझ न पाना याद है//

दर्जनों यारों पे भी, इकलौता मुझे जो कह दिया/
हाय! मैं सदके जावां, तेरा शरमाना याद है//

शर्मिंदा हूं बेवकूफी पर अपने, वो फेरे कैसे ले लिए/
शाद हूं, आबाद हूं अब, तब ब्याह रचाना याद है//

-----------------------------उदयेश रवि--

Friday, February 12, 2010

क्या बहरा नहीं था आइन्स्टीन

एक था घर 
थे वहां तीन बच्चे
दो दादा-दादी
एक माँ और बाप
उगते हुए सूरज के देश का
यह प्यारा सा था परिवार
हँसते-बोलते कई परिवार थे ऐसे 
इस ख़ूबसूरत शहर में....

अचानक एक दिन रोशनी हुई
काफी तेज़ आवाज़ हुई 
बाहर झाँका लोगों ने तो 
एक दैत्याकार धुआं बढ़ रहा था उस ओर
सौभाग्यशाली थे वे 
जिन्हें हार्ट-अटैक हो गया डर से
वे जो जिंदा थे
तरस रहे थे 
कुछ सैकेण्डों में 
ऑक्सीजन के लिए

इधर, दम घुटा जा रहा था
उधर लाशें-ही-लाशें थीं बिछीं
त्राहिमाम चारों तरफ 
और आवाजें थीं मदद के लिए पुकारते लोगों की

निर्दोष दुधमुहाँ मर चुका था
यहाँ पैदा होने के कारण
माँ के सीने में धुकधुकी थी
बाकी सभी चिल्लाने कि कोशिश करते 
और धुआँ भर जाता मुंह में
फिर  खांसते-खांसते चेहरा लाल हो जाता 
और उछालते-कूदते निश्चेष्ट पड़े रह गए वो

इधर, आइसान्होवर सोया था चैन की नींद 
बनाकर परमाणु बम
नागासाकी-हिरोशिमा को जिसने
कुछ ऐसे किया तबाह

आइन्स्टीन को भी ये चीखें सुनाई नहीं पड़ी थी
तो क्या
यह समझना नहीं चाहिए कि
बहरा था आइन्स्टीन?
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