एक था घर
थे वहां तीन बच्चे
दो दादा-दादी
एक माँ और बाप
उगते हुए सूरज के देश का
यह प्यारा सा था परिवार
हँसते-बोलते कई परिवार थे ऐसे
इस ख़ूबसूरत शहर में....
अचानक एक दिन रोशनी हुई
काफी तेज़ आवाज़ हुई
बाहर झाँका लोगों ने तो
एक दैत्याकार धुआं बढ़ रहा था उस ओर
सौभाग्यशाली थे वे
जिन्हें हार्ट-अटैक हो गया डर से
वे जो जिंदा थे
तरस रहे थे
कुछ सैकेण्डों में
ऑक्सीजन के लिए
इधर, दम घुटा जा रहा था
उधर लाशें-ही-लाशें थीं बिछीं
त्राहिमाम चारों तरफ
और आवाजें थीं मदद के लिए पुकारते लोगों की
निर्दोष दुधमुहाँ मर चुका था
यहाँ पैदा होने के कारण
माँ के सीने में धुकधुकी थी
बाकी सभी चिल्लाने कि कोशिश करते
और धुआँ भर जाता मुंह में
फिर खांसते-खांसते चेहरा लाल हो जाता
और उछालते-कूदते निश्चेष्ट पड़े रह गए वो
इधर, आइसान्होवर सोया था चैन की नींद
बनाकर परमाणु बम
नागासाकी-हिरोशिमा को जिसने
कुछ ऐसे किया तबाह
आइन्स्टीन को भी ये चीखें सुनाई नहीं पड़ी थी
तो क्या
यह समझना नहीं चाहिए कि
बहरा था आइन्स्टीन?
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