चला सिंह अब साधू बनने
लिए कमंडल हाथ
देखा चरते घास जब
हिरन-हिरनी साथ
राम-राम करते मन को
बड़े जतन से मनाया
किसी तरह से चार कदम
आगे को बढाया
हस्तिराज मिले आगे
पूछा उनसे हाल
हाथ उठाकर उसे कहा
बड़ा प्रबल है काल
आगे मिल गयी लोमडी
दुबक के देखा वेश
थोड़ा हंसकर उसे कहा
माया का न शेष
झाडियों से निकल भालूजी
करते आए डांस
कहा, देख लूँ फाड़ के आँखें
शायद मिले न चांस
हाथ जोड़ उसने विनती की
हमपर एक एहसान करो
राजा बनाकर मुझको
अब तो पदवीदान करो
कहा अकड़ के सिंहराज ने
कहना मत फ़िर अगली बार
मेरे लौटने तक संभालेगी
सिंहनी राजा का प्रभार।
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बहुत बड़ा वो हाथी था
जो बच्चों का साथी था
चार पांव थे खम्भे से
काले-काले लंबे से
सर बड़ा विकराल था
यही तो उसका ढाल था
आगे झूल रहा था सूंड
नीचे जो गया था मुड
दो दांत थे सादा-सादा
ऊपर लगा था सुंदर हौदा
हौदे पर बैठा है बच्चा
जो हाथी को लगता है अच्छा।
-उदयेश रवि
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