Sunday, March 1, 2009

MERI KAVITAYEIN

तनहाइयों में रहते-गुजरते अक्सर भावुक होकर कुछ लिख बैठता हूँ तो कविता बन जाती है। मेरी सभी कविताएँ वक्त के साथ एक संवाद है। वक्त जब भी फुर्सत में रहता है वो मेरी कविताओं को गुनगुनाता है। मुझे सुनाता है। मुझे खुशी होती है, जब कोई भी सुनने को तैयार नही होता वक्त तो मेरी पीड़ा को समझता है। वो मेरी ही कविताओं को पढ़कर मेरे घाव सहलाता है।
मुझे उससे ताक़त मिलती है।

ऐसे ही कुछ शब्दयुग्म आप मित्रों की प्रतिक्रियाओं के लिए प्रस्तुत है।
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