Thursday, March 5, 2009

हास्य-Vyangya

गाँव पहुँचा, दोस्त जुटे
सबने कहा- दिल्ली की सुना
मैंने कहा- जय हो! यार विषय भी क्या चुना
चलो यही इच्छा है तो सुनाता हूँ
पहले थोड़ा अद्धे में उतर आता हूँ।

मेट्रो से शुरू कर, हम लड़कियों तक जायेंगे
बाकी मुद्दे बाद में उठाएंगे
वैसे भी मुद्दे यहाँ स्थाई नही होते
प्याज़ के भाव की तरह रोज़ चढ़ते-फिसलते हैं
जैसे प्रेम पथिक पार्कों में मिलते हैं।

आजकल यहाँ मिस्ड कॉल का दौर है
कभी ये तो कभी वो मरती है
पलभर में प्यार और गुस्सा उतरती है
फ़ोन से चिपकना युवाओं की नयी आदत है
पता नही, ये इश्क है या शहादत है

यहाँ लड़कियां मस्त, लड़के बेचारे हैं
इक्कीसवीं सदी के इश्क के मारे हैं
फ्लिर्तिंग आम बात है
दिल्ली की ये सौगात है

दफ्तर भी यहाँ बेचारा हो गया है
कर्मचारियों की माफिक आवारा हो गया है
वित्त की ढीली कमर है
काम-धंधों की हालत लचर है
मालिकान frustrated हो गए हैं
बेचारे कॉल waited हो गए हैं
कर्मचारियों की बात साथी से
जब तक न हो जाए पूरी
redial करते रहना तबतक
उनकी मजबूरी।

यहाँ भिखारियों पैर भी इश्क
इस कदर चढा है
हूगली के ऊपर जैसे ब्रिज-हावडा है
नेता इश्क में पागल हैं धन के
लम्बी बातें हैं इन प्रजातान्त्रिक सजन के
मंदी की मार यहाँ भी पुरजोर पड़ी है
recession की चुडैल सामने खड़ी है
लोग ऑफिस जाते घबराते हैं
रहत मिलती, जब नौकरी समेत घर आते हैं
रात की नींद यहाँ गायब है
यह दिल्ली है अजायब है।

commonwelth की तैयारियां चहुँओर हैं
स्टील के बस पडाव बन गए हैं
कंक्रीटों की चादर, जमीन पे तन गए हैं
भू-जल का स्तर दिनोंदिन गिरा है
मगर चरित्र की तरह उसे इतना न गिराइए
दिल्लीधीशों से ये मेरा मशविरा है।

सुरसा के मुंह की तरह
बढ़ते हैं यहाँ आता-दाल के भाव
यही दिल्ली, यही इसका स्वभाव।

यहाँ मेट्रो के पांव लंबे हो रहे हैं
रास्तों का बोझ खम्भे धो रहे हैं
कहीं भू-तल तो कहीं भू-पर इसका जादू है
मेट्रो हर हाल में सुस्वादु है।

धमाकों से यह शहर दहलता नहीं वैसे
रापचिक होकर सरकार चलती है जैसे
संवेदनाओं की बातें महज खेल है
दिल की बातें भी मॉल का सेल है
सौ का माल है जो भी ले लीजिये
पचास का सामान पचास टैक्स दीजिये।

इतनी खासियतों के बाद भी
दिल्ली निराली है
मतवाली है
लाल, पीली, बत्तियां इसकी खुशहाली है
ख़ूबसूरत फ्लाई ओवरों से शहर गुलज़ार है
हर चौराहे पर १ न १ मजार है।

दिल्ली देखोगे तो हंसोगे-खिलखिलाओगे
प्रेमी बनोगे या कपड़े उतरकर चिल्लाओगे
ये दिल्ली है अब माडर्न है मेरी जान
यहाँ जान के प्यासे इंसान भी रहते है
मेरे-आपके जैसे महान भी रहते है
सभी रंगों का मेल है
तभी तो दिल्ली में अधिक सेल है
नेता, कुत्ता, पागल सबकुछ मिलेगा
जो जैसा है वैसा ही चलेगा।
[]





3 comments:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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  2. इस नए ब्‍लॉग के साथ आपका हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. आपसे बहुत उम्‍मीद रहेगी हमें .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  3. Dhanyawaad Ajay ji aur Sangeeta Ji.

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